दोस्तो, सभी को मेरा बहुत बहुत प्यार। मैं मेरी चूत की चुदाई स्टोरी लिख रही हूँ।
एक बहुत ही कामुक किस्म की औरत हूँ मैं! शादी के पहले मैंने अलग अलग तरीकों से बहुत मजे लूटे।
मगर उतना ही निकम्मा पति मुझे मिला। ससुराल वालों ने लड़के की कमज़ोरी को छुपाया।
मैं गरीब परिवार से थी और लड़के वाले बहुत ज्यादा अमीर थे।
उनका कहना था कि भगवान का दिया सब कुछ है बस हमें ऐसी लड़की चाहिए जो घर संभाल ले। दो कपड़ों में ही ले जाएंगे।
बाप का साया नहीं था तो सभी ने मां को समझाया कि लड़की को इस घर में ब्याह दे, सारी उम्र मौज करेगी।
मैं थी भी बला की खूबसूरत। ज्यादा पढ़ी भी नहीं थी।
बी।ए में दाखिला लिया ही था तभी मेरे घरवालों ने मुकेश (मेरे पति) के रिश्ते को हाँ कर दी।
मेरे विचार भी नहीं जाने उन्होंने।
एक बार मेरा दिल बहुत टूटा।
मेरी मौसी मेरी जवानी को देख कहने लगी कि खिली पड़ी है फिर कोई भी मसल कर चला जायेगा। जल्दी से ससुराल भेज दे।
फिर मैंने हौसला कर लिया और चुपचाप इस शादी के लिए हाँ कर दी।
एक दिन मौसी आई और मुझे अकेली साइड में ले गई।
ले जाकर बोली- देख लड़की, छुपाना मत। सच बता कितनी बार लेट चुकी हो नीचे?
मैं एकदम से हैरान रह गयी।
मौसी बोली- छुपा मत, मुझे गांव की हर खबर रहती है। अभी बता दे, मैं कुछ कर दूंगी। बड़े घर में नाक मत कटवा देना।
मैं बोली- हां, लेट चुकी हूं मौसी। मगर मां को मत बताना।
इस तरह मौसी के सामने मैंने राज खोला और उन्होंने मुझे फिटकरी से चूत की सिकाई करने को कहा।
मैंने शादी से पहले दिन काफी सिकाई की और फिर मेरी शादी हुई और मैं बड़े घर में आ गयी।
सभी रीति रिवाज़ निभाए गए। सभी चाव पूरे हुए।
मुझे महसूस हुआ कि मुकेश थोड़ी बड़ी उम्र के हैं। देखने में वो हट्टे कट्टे थे, चौड़ा सीना था। पहली रात हमको अलग अलग सुलाया गया।
अगली रात से पहले मौसी बोली- वो काम (फिटकरी वाला) फिर कर लेना।
रात को आलीशान कमरे को सजा मुझे मेरी नन्द ने बिस्तर पर बिठा दिया।
अंदर डर सा था कि चोरी न पकड़ी जाए।
मुकेश आये और उनके मुंह से दारू की गंध आ रही थी।
फिर घूंघट उठा मेरे होंठों को धीरे से चूमते हुए बोले- वाह … क्या खूबसूरती की मूरत हो।
धीरे धीरे कपड़े बदन से हटते गए और मुकेश ने मुझे बांहों में कस लिया।
उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया और अपने अकड़े लंड पर रख दिया।
मैं शर्माती हुई मुहँ नीचे करके बैठी रही।
वो बोले- सहलाओ इसको जान!
मैं धीरे धीरे सहलाने लगी उनके लंड को!
वो मेरे दूध को दबाने लगे। कभी मेरे निप्पल को मसल देते थे।
उनके लंड में जोश आ तो आ रहा था मगर बराबर टिक नहीं रहा था।
जब जब वो मुझसे लिपटते तो जोश रहता। दारू के नशे में वो चूर थे।
मेरा दिल कर रहा था लंड को मुँह में लेकर उसके तनाव को ज्यादा कर दूं मगर मैं पहल नहीं कर रही थी।
वो एकदम बोले- रानी, मुँह में लो ना ज़रा … पूरा जोर लगा दो ताकि यह तनकर तुम्हारे हुस्न को भोगने का आगाज़ कर सके।
मैं अनजान सी बनकर बोली- छी … मुहँ में?
वो बोले- हाँ रानी, यह भी हिस्सा है सेक्स का! खुलकर चूसो और मजा लो।
उनके ज़ोर देने पर मैंने लंड को पकड़ा और होंठों पर रगड़ने लगी।
वो सिसकारे- उफ … मेरी जान … उफ … आह! पूरा लो ना रानी!
मैंने पूरा लंड मुँह में डालकर चूसना शुरू कर दिया।
उनके लंड से हल्का हल्का लेसला पानी भी बह रहा था जिसको मैं चाट रही थी।
अपने पति के लंड में अधिक तनाव ना आता देख मैं मायूस हो रही थी।
मुझे वो मजा नहीं आ रहा था जो सरपंच के लड़के मगन के साथ आता था।
वो मुझे मसल देता था। चाट चाटकर मेरी चूत को लाल कर देता था मगन।
मगन की मजबूत बांहों में पिसने के बाद मुकेश के साथ मुझे आंनद ही नहीं आ रहा था।
मेरी चूत में आग लगी पड़ी थी।
लंड चूसते चूसते मैं कूल्हे उठा उठाकर चूत को धकेल रही थी। उनको अहसास करवा रही थी कि मेरी चूत को भी चाटो।
कामुक अंदाज में लंड चूसा तो उसमें तनाव तो बढ़ा लेकिन मगन के मुकाबले लंड छोटा था।
जब उनको लगा कि उनका कहीं मुँह में ना छूट जाये तो लंड को उन्होंने बाहर खींच लिया और बोले- सीधी लेट कर टाँगें उठा मेरी जान!
उन्होंने अपने होंठ मेरी चूत पर टिका दिए।
कुछ देर चाटने के बाद मुकेश ने लंड को चूत पर रखा।
वो तनाव फिर थोड़ा कम हो गया था।
वो बोले- जान … गंदी गंदी बातें कर। बोल कि मुकेश मेरी चूत की चुदाई करो … मेरी चूत फाड़ दो, मेरी चूत रगड़ कर चोद दो।
उनकी बात सुनकर मैं शर्माने लगी तो वो कहने लगे- खुलकर बोलो … मैं बिल्कुल भी गुस्सा नहीं करूंगा।
मैं बोली- ओह मुकेश … घुसा दो अंदर … मेरी कली को फूल बना दो … डाल दो अपना लंड चूत में … फाड़ दो मेरी चूत को … आह।
वो लंड को चूत पर रगड़ रहे थे और मेरे चूचे मसल रहे थे।
साथ में कह रहे थे- हां मेरी कुतिया … फाड़ दूंगा … आज तेरी चूत, मेरी रांड।
यह सुनकर मैं चौंक गई।
मैं फिर से बोली- ओह्ह मुकेश … घुसा दो … फाड़ दो … बहुत आग लगी है।
मैं भी बेशर्म हो गई थी क्योंकि चूत में आग लगा दी थी उन्होंने।
जैसे ही मेरी बातों से तनाव आया मुकेश ने झटका मारा और मौसी के सिखाए मुताबिक मैंने जांघों को सिकोड़ लिया।
मैंने टाइट कर दी चूत अपनी।
वो सिसकारे- ओह्ह रानी … ले … ले ले मेरा लंड आह!
उधर से मैं भी चीखी- आह्ह … फट गयी … आह्ह मर गयी।
मेरी बातें सुनकर उनके लंड में पूरा तनाव आ गया।
वो मुझे चोदने लगे और मैंने उनको बांहों में जकड़ कर टांगें भी लपेट लीं और चुदने का मजा लेने लगी।
मैं खुश थी कि चोदू पति मिल गया। वो तेजी से धक्के लगाते हुए चोदने लगे।
मुझे मजा आ रहा था और मैं उनको प्यार कर रही थी।
मगर जल्दी ही उनकी स्पीड एकदम से थम गयी। मैंने सोचा कि ब्रेक ले लिया है।
लेकिन वो तो फिर लुढ़क ही गये।
मैंने सोचा कि उठेंगे।
लेकिन वो नहीं उठे।
वो बस एक तरफ लेटकर पसर गये और मैं देखती रह गयी।
जल्दी ही वो खर्राटें मारने लगे।
मुझे मौसी पर और किस्मत पर गुस्सा आ रहा था। मैंने ज़ोर ज़ोर से चूत को उंगली से रगड़ रगड़कर खुद को ठंडी किया।
कहाँ गांव में लड़कियों से सुना था कि पति पहली रात को 3-3 बार हल्की करते हैं।
मेरी चूत की चुदाई अधूरी रह गयी थी। अपनी किस्मत को कोसते हुए मैं सो गई।
अगले दिन उठी और तैयार होकर बाहर निकली।
ननद मेरी उतावली हुई रात के बारे में पूछने लगी।
मैंने कुछ जवाब नहीं दिया।
पूरा दिन मुकेश पास नहीं आये।
अगली रात आई। सोचा आज बेशर्म होकर खेलूंगी, इनके तनाव को अपनी अदाओं से लाऊंगी।
आज सेक्सी नाइटी पहनकर कमरे में गई।
मुकेश फिर पीकर आये थे।
मैं बड़ी अदा से उनके करीब गई और उनके सीने पर हाथ फेरते हुए बोली- जान इतनी मत पीओ, कल भी आप बेहोश होकर सो गए।
उनकी आंखों में झांकते हुए मैं बोली- मेरा नशा करो ना … एकदम ताज़ा नशा है।
वो मुझे भी पिलाने लगे तो मैंने मना कर दिया। मगर वो होंठों से लगाने लगे और मैं पी गयी।
कुछ देर बाद मुझे भी कमरा रंगीन दिखने लगा।
मैंने उनको बिस्तर पर धकेल दिया और उनका पजामा उतार दिया। उनकी जांघों पर बैठकर अपनी नाइटी उतार फेंकी और इनके लंड को मुँह में लेकर खूब चूसा।
लंड खड़ा हो गया। मैंने सोच लिया कि आज अपनी जवानी से इनका जोश वापस लाऊंगी।
फिर मैं घूमकर चूत इनके होंठों के पास ले गई और लंड चूसने लगी।
यह मेरी चूत चाटने लगे।
जब मैं ज्यादी ही जोश में चूसने लगी तो वो बोले- बस बस … आह्ह … रुको।
फिर उन्होंने पलट कर नीचे घुसा दिया और चोदने लगे और कुछ ही पल बाद खाली हो गये।
मैं फिर से प्यासी रह गयी।
ऐसे ही दिन बीतने लगे।
बहुत मायूस थी मैं!
अगर मायके जाने को बोलती तो सभी कह देते- वहीं से तो आई हो, अब हमारा दिल नहीं लगता! यहीं रहो।
एक दो बार गई भी इनके साथ और वापस आ जाती।
3 महीने बीत गए। मैं कैद होकर रह गई। घर में सासू मां रहती तो बस फोन पर टाइम गुज़ार रही थी।
मगन का नंबर भी नहीं था क्योंकि फोन मुझे इन्होंने लेकर दिया था।
टाइमपास के लिए टीवी देख लेती।
सासू मां को इल्म था कि उनका बेटा शराबी है और बहू बेहद जवान है। इसलिए वो मुझे दायरे में रखती थी।
शादी के बाद एक रात ऐसी नहीं थी जब इनके लंड से मैं झड़ी होऊं।
4-5 महीनों बाद सासूजी बोलने लगीं- बहू … पोते का मुंह दिखा दे।
तब तक मैं भी सलीके से रहने लगी थी।
अब सासू मां को लगने लगा कि यह बहुत शरीफ है। यह ऐसी वैसी नहीं है। थोड़ा यकीन करने लगी मुझ पर।
अब वो रिश्तेदारों के पास चली जाती थी मुझे छोड़कर।
तभी इन लोगों ने सलाह की कि ऊपर के हिस्से में जो लकड़ी का काम होने वाला है, वो अब पूरा करवा लिया जाए।
सासू मां बोली- हां, पूरा करवा कर पीछे सीढ़ियां चढ़वा दो और उसको किराये पर दे दो। इतना बड़ा घर है, ऊपर जाने की जरूरत ही नहीं है।
मैं सुन रही थी मगर मुझे इन सबमें कोई खास ध्यान नहीं था।
मैंने कहा- मां, मैं कुछ दिन गांव हो आऊं? मां की याद आ रही है।
वो बोली- अरे तुम गांव में ही रही हो। मेरा यहां अकेली का दिल नहीं लगेगा। वैसे भी घर में मिस्त्री लगे रहेंगे। काम भी बढ़ जायेगा। मुकेश तुझे मिलवा लायेगा।
ये सुनकर मैं चुप हो गयी।
कुछ दिन के बाद घर में मिस्त्री आ गये। उनमें से एक गबरू जवान और मजबूत शरीर का मालिक था।
उससे मेरी नजरें टकराईं तो टकरा ही गईं।
वैसे मैं उनके पास नहीं जाती थी मगर दूर से उसको जब देखती तो बदन सिहर उठता था।
बहुत प्यासी नजर से उसको देखती और सास का भी ख्याल रखती कि कहीं वो देख ना ले।
वो भी जब मुझे देखता तो बिना नजर हटाए देखता रहता।
उसका नाम गुलाब चंद था। घर में बात होती थी कि कश्मीरी है, बहुत ज़बरदस्त कारीगर है। बहुत हुनर है इसके हाथ में। गुलाब भी मेरा दीवाना हो गया था। मगर हम अभी करीब तक नहीं आए थे।
जब वो काम करने लगता तो निक्कर सी और बनियान ही पहनता था।
दो चार दिन के बाद उसने दूसरी जगह का काम भी ले लिया और मेरे पति से कहा- यहां मैं अकेला संभाल लूंगा बाकी लोगों को दूसरी साइट पर भेज देता हूं।
एक दिन मेरी सास का बीपी कम हो गया था। उनकी बहन की तबियत खराब थी और ये खबर सुनकर वो परेशान थी। इसलिए मेरी सास सुबह से बिस्तर पर ही थी।
जब मिस्त्री आये तो उनके लिए चाय मैं ही लेकर गयी।
उस दिन पहली बार मैं गुलाब के करीब गयी।
वो मुझे निहारता ही रहा।
कांपती आवाज़ में होश में आते हुए बोली- जी चाय।
गुलाब- रख दीजिए, ले लूंगा।
मैं काली साड़ी में क़यामत लग रही थी। चाय रखते हुए झुक गई तो दोनों उरोज उछल कर ऊपर हो गए।
गुलाब की प्यासी नजरें मेरे आँचल पर थीं। चाय रख सीधी हुई और मुड़ी तो आवाज़ आई- वाह ऊपर वाले ने क्या तोहफा बनाया है।
सीढ़ियों के पास यह सुनकर बड़ी ही अदा से मुड़कर मैंने देखा।
गुलाब ने हाथ हिला नवाज़ा।
नशीली नजरों से देखते हुए उसका हिलाया हाथ कबूल सा करते हुए मैं मुस्कराकर नीचे आ गई।
आकर मैं सास के पास बैठ गई और उनका बीपी चेक किया जो अभी भी लो था।
उनको उल्टी होने लगी।
मैंने मुकेश को फोन किया- जल्दी आओ, मां उल्टियाँ कर रही है।
वो बोले- मैं किसी को भेजता हूँ। मैं तो बहुत दूर हूँ।
पिता जी भी बाहर थे तो इन्होंने लड़का सुनील भेज दिया शोरूम से।
उसने सासू जी को उठाया और साथ में गुलाब भी आ गया, सबने मिलकर सहारा देकर गाड़ी में बिठाया।
मैं भी बैठने लगी तो मां बोली- बहू तुम रहने दो। यह ले जाएगा, घर खाली थोड़ी छोड़ना है।
मैंने दरवाज़ा बंद किया और गुलाब भी ऊपर जाने लगा।
उसने मुझे देखा तो मैं मुस्करा दी।
बहुत ज़बर्दस्त मौका था। एक डर भी था कि पता नहीं सुनील कितनी जल्दी डॉक्टर को दिखा लौट आएगा।
गुलाब बोला- जी मोहतरमा, मैं काम करने लगा हूँ ज़रूरत हो तो बुला लेना।
मैं बोली- जी ठीक है।
वो बोला- थोड़ा पानी पिला दीजिये।
मैं पानी का गिलास लेकर सीढ़ियों के पास गई।
वो सीढ़ी पर बैठा था।
एक बार फिर मैं ट्रे पकड़े हुए झुकी तो उरोज ऊपर उठे।
वो उनको देख दीवाना सा हो गया।
कामुक अंदाज में वो बोला- क्या किस्मत है मुकेश भाई जान की!!
मुकेश का नाम सुनकर मेरा चेहरा उदास हो गया और मैं जाने लगी।
उसने चेहरा पढ़ लिया और पीछे आते हुए पूछने लगा- एकदम से क्या हो गया?
मैंने कोई जवाब नहीं दिया तो उसने हाथ पकड़ा और बोला- आप बुरा मान गयीं क्या?
तो मैंने कहा- क्या बताऊँ … यहाँ तो आकर मेरी ज़िंदगी झंड हो गई है।
उसने मेरे कँधे पर हाथ रखा तो मैं कसमसा गई।
वो बोला- लगता है असली मर्द के सुख से दूर हो आप। तभी जिस दिन आया मैंने आपको देख अंदाज़ा लगाया कि पेट पर कोई बरकत नहीं आई है इतने महीनों बाद भी।
मैं शर्मा गई।
उसने आगे बढ़कर मुझे बांहों में जकड़ लिया।
मेरे दोनों हाथ उसकी पीठ को कसने लगे और उसके हाथ मेरी गोरी पीठ पर रेंगने लगे।
मुझको बांहों में लेते ही पता लगा कि उसकी निक्कर में भरपूर तनाव था जो अलग से महसूस हो रहा था।
उससे लिपटी हुई मैं बोली- गुलाब, कोई आ जायेगा कभी भी।
वो बोला- मेरी जान … दरवाज़ा तो खोलना पड़ेगा, तभी तो आएगा।
उसने मेरे होंठों को चूसना शुरू कर दिया। फिर बदन को चूमने लगा।
मैं भी आह्ह आह्ह करके सिसकारने लगी।
पल्लू हटा उसने ऊपर से मेरे कई महीनों से कठोर उरोजों को खूब दबाया तो मैंने भी झपट कर उसके उभरे लंड को पकड़ लिया।
वो बोला- उफ मेरी जान … बाहर निकाल कर पकड़ लो।
मैंने झट से उसकी निक्कर को सरकाया और लंड ऐसे बाहर कूदा जैसे स्प्रिंग लगे हों।
इतना मोटा बड़ा भयंकर लंड था। मेरा मुंह खुला रह गया। मैं उसपर टूट पड़ी। ज़ोर ज़ोर से हिलाते हुए चूसने लगी।
दो मिनट में ही गप गप की आवाजों से कमरा गूंजने लगा।
पूरी उम्मीद में चूसे जा रही थी कि यह मुझे एक सम्पूर्ण औरत बना देगा।
मैं कभी उसको होंठों पर रगड़ती, कभी मुँह में डालती और कभी गालों पर रगड़ती।
वो बोला- आह्ह … खा जा … आह्ह … रानी अपनी चूत नहीं दिखाओगी हमें? चूत दिखा दो बस … कपड़े मत उतार, आज जल्दबाजी में तेरे यौवन का स्वाद नही लूंगा। इसको फुर्सत में खोलूंगा। बस दिखा दे।
उसने मेरी साड़ी उठाई और कर कराकर मेरी चूत के दर्शन कर ही लिये।
वो बोला- वाह वाह … मेरी कुतिया … क्या लाल चूत है।
उसने जीभ से कुरेदा तो मेरे मुख से सिसकारियाँ फूटने लगीं। वो मस्त अंदाज़ में चूत को चाटने लगा।
फिर उसने लंड के सुपारे को मेरी चूत पर रगड़ा तो मेरी जान निकल गई।
तभी घण्टी बजी और हम सीधे हुए। जल्दी से खुद को ठीक किया और वो ऊपर निकल गया।
मैं साड़ी ठीक करती हुई बाहर गई और गेट खोला।
सुनील ने सास को पकड़ा था। साथ में एक लड़का और था।
उन्होंने सास को रूम में लेटाया और ग्लूकोस की बोतल लगा दी।
सास बेहोशी की सी हालत में थी।
उनको आराम करने की कहकर वो लड़के चले गये।
मैं पास बैठ गई। उनका सिर दबाने लगी। वो जल्दी गहरी नींद में सो गई।
गुलाब नीचे ही आ चुका था, सब देख रहा था, मुझे इशारा कर रहा था कि दूसरे कमरे में आ जा।
सास की हालत उठने लायक नहीं थी। उल्टी की वजह से कमजोरी बहुत थी।
हिम्मत करके मैं दूसरे कमरे में गई क्योंकि किसी के आने की उमीद नहीं थी।
जाते ही गुलाब ने मुझे दबोच लिया और उठाकर बिस्तर पर पटक दिया और मेरे ऊपर चढ़ गया।
एक झटके में मेरी साड़ी बदन से अलग हो चुकी थी। गुलाब ने दोनों हाथों से मेरे चूचे पकडे और दबा दबा कर पीने लगा।
मैं मदहोश होकर लेटी हुई आंनद उठा रही थी और साथ में कह रही थी- कोई आ जायेगा … आह्ह … गुलाब … ओह्ह … गुलाब … मुकेश असली मर्द नहीं है, तुम एकदम असली हो आह्ह।
गुलाब ने उठकर अपनी निक्कर उतार दी और अपना अंडरवियर भी उतार फेंका।
उसका 7 इंच के करीब का लंड तनकर खड़ा था। उसने मेरा लोअर भी उतार दिया और जांघों पर लंड रगड़ने लगा।
फिर होंठों के पास जैसे ही लंड लेकर आया मैंने पकड़ कर मुँह में ठूंस लिया और पागलों की तरह उसका लंड चाटने लगी।
मैं उसपर थूक कर चाट रही थी।
तभी मुकेश की कॉल आई और लंड को मुँह से निकालते हुए गालों पर रगड़ते हुए मैंने फोन उठाया- हैलो, कहिए?
मुकेश- कैसी हो और मां कैसी है?
मैं- वो ठीक है, डाक्टर ने ग्लूकोस लगाया है।
गुलाब ने चूत को सहलाया तो मेरी सिसकी सी निकल गई।
वो बोले- क्या हुआ?
मैं कंट्रोल करके बोली- कुछ नहीं, आप कब आओगे?
वो बोले- जान, मैं तो रात को आऊंगा, किसी को ज़मीन दिखाने दूर आए हुए हैं।
मैं- ठीक है, जल्दी आना।
मैंने फोन बंद किया और खुलकर गुलाब से लिपट गई।
उसने मुझे पलटा दिया जिससे मेरी चूत उसके होंठों के पास आ गई। लंड मेरे मुँह के पास आ गया।
वो मेरी चूत चाटने लगा और मैं पागलों की तरह उसका लंड।
जब वो ज़ुबान घुसा देता और हिलाता जिससे मैं उसके लंड को ज़ोर से चूसती।
मेरी गांड बिल्कुल उसकी आँखों के सामने थी। उसने उंगली गीली करके छेद में घुसाई तो मैं कराह उठी।
चूत चाटते हुए गुलाब गांड में उंगली भी करता रहा। उसका लंड था कि झड़ने का नाम नहीं ले रहा था।
ऐसा ही लंड पसंद था मुझे जिसके साथ मैं कुछ देर तक खेल सकूं।
मैं बोली- गुलाब, रहा नहीं जा रहा अब, बुढ़िया उठ जाए इससे पहले आज एक बार सारी खाज मिटा दो राजा।
वो बोला- ऊफ्फ रानी … आओ ना … खुद ही ले लो इसको चूत में!
छत की तरफ उसका डंडा खड़ा था। मैं खड़ी हुई और टाँगें चौड़ी करके नीचे होकर सुपारे को गर्म चूत पर टिका दिया और बैठने लगी।
उसका मोटा लंड था और अंदर आते ही चूत में तीखी चीस उठी; मगर मैं बैठती गई।
आधा लंड घुसवा कर ऊपर नीचे होने लगी।
वो चिल्लाया- रंडी पूरा डाल!
मैं- गुलाब, दर्द होगा।
वो बोला- चल साली कुतिया, ऐसे नहीं घुसेगा। रुक तू।
उसने मुझे पलटा और नीचे डालकर मेरे दोनों चूचे पकड़ कर तेज़ झटका मारा।
मेरी चीख निकल जाती अगर वो हाथ मुंह पर न रखता।
मेरी आंखों से पानी बहने लगा। 2-3 झटकों ने कई महीनों से बंद दरवाज़े पूरी तरह खोल दिये।
कुछ देर उसने फंसा रहने दिया और फिर हिलाने लगा।
जब उसको लगा कि मैं ठीक हूँ तो उसने हाथ हटा दिया।
उसकी पीठ पर नाखून खुबो कर मैं बोली- इतने बेरहम क्यों हो तुम?
वो बोला- साली औरत को मजा ही असली ऐसे आता है, जब कोई जल्लाद की तरह चोद डाले।
उसने झटके तेज़ कर दिये।
मैं खुद गांड उठा उठाकर साथ दे रही थी।
मेरी आँखों की पुतलियां मस्ती से चढ़ने लगीं।
मैं होंठ अपने चबा रही थी और सिसकार रही थी- उफ … चोद गुलाब … चोद … आह … फाड़ दे मेरी चूत … उफ … आह … ज़ोर से रगड़।
कुछ देर चुदने के बाद मैं एकदम से उससे लिपटी और सिसकार उठी- आह्ह गुलाब … गई मैं … आह्ह … गुलाब।
मेरी चूत कई महीनों के बाद लंड की रगड़ से झड़ रही थी। इतना लावा फूट रहा था कि गुलाब का लन्ड गीला होकर घुस रहा था।
वो बोला- कुतिया … लगता है बहुत दिनों से नदी का नक्का नहीं खुला। पानी जांघों तक बह रहा है।
उसने तेज़ तेज़ झटके दिये और जब उसका गर्म लावा छूटने लगा मैं फिर से झड़ गई।
उसने ज़ोर ज़ोर से झटके दिए और बाहों में कस लिया।
मैं भी उसमें समा गयी और बोली- आह्ह … भर दे राजा … आह्ह मेरी चूत में औलाद की बरकत कर दे।
उसने जब लंड निकाल कर मुँह के पास किया तो पूरा सफेद हुआ पड़ा था। दोनों का पानी लगा हुआ था।
उसने कहा- साफ कर दे।
मैंने मुख में डालकर उसका लंड चाटकर पूरा साफ किया।
कुछ देर चूमते सहलाते हुए हम लेटे रहे। फिर मैं उठकर बाथरूम में गई। मैंने सफाई की और बाहर आई।
वो मेरे पास आया और मैं उससे लिपट गई।
एक दूसरे को चूमने के बाद हम कपड़े पहनने लगे।
ऐसे मेरी चूत की चुदाई पूरी हुई।
फिर वो ऊपर चला गया मैं सास के पास गई। ग्लूकोस थोड़ा ही बचा था। सास सोई पड़ी थी।
रात को मुकेश पीकर लौटा और रोज की तरह लंड घिसकर सो गया।
दो दिन बाद मौसी की डेथ हो गई। मम्मी-पापा दोनों वहाँ चले गए। उन दिनों मैं गुलाब की बांहों में पड़ी रहती थी।
रात को भी मुकेश को दारू पिलाकर हम सुला देते और खूब चुदाई का मजा करते।
गुलाब को गए हुए तीन महीने हो गये हैं। मैं उसके बच्चे की माँ भी बनने वाली हूँ।
मगर खुशी मुकेश मना रहा है।
बुढ़िया भी बहन के जाने के गम को दादी बनने की खुशी में भुला चुकी है।
मगर मेरी चूत प्यासी है।
अगली कहानी में मैं बताऊंगी कि कैसे मैंने आने बहाने मुकेश से नशे में गुलाब के कमरे का पता लिया और वहाँ गई भी।
वहां गुलाब तो नहीं था। मगर उसके साथी मिल गये थे।
Friends mera naam Vikram hai. Main ek middle class family se hoon aur Faridabad mein rehta hun. Mere ghar mein main, mummy, papa hain bas. Papa ka apna kaam hai. Main kabhi kaam pe papa ke saath to kabhi masti yahi mera kaam hai. Meri mom house wife hain. Ye kahani meri maa ki hai. Meri maa ka naam Sapna hai, unki age 48 years aur figure 36 34 38 hai.. Ab main kahani pe aata hun aapko jyada na pakate hue.Ye khani meri maa or mere facebook friend ki hai. Meri maa ek normal house wife thi is kahani se pehle. Ye kahani 3 month pehle ki hai. Karib 6.. Months pehle main aapne ek facebook friend ko apne ghar leke aaya tha or use apni mom dad se milaya tha. Wo humare ghar se karib 5 km door hi tha to hum dono mein bahut achchhi dosti ho gayi or us ka mere ghar aana jaana ho gaya. Wo kabhi kabhi mere na hone par bhi aane laga. Kabhi meri maa use market mein milti to wo maa ki help bhi kar deta tha. Dheere dheere wo maa se bahut close ho gaya or maa ne bhi use apna mobile nu...
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