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भाभी की चूत गुरुदक्षिणा में मिली

 एक पुरानी भाभी की याद आ गई. तब मैं करीब 24 साल का था, अविवाहित था, अपने पैतृक निवास से दूर एक छोटा सा घर किराये पर लेकर नौकरी कर रहा था।
स्कूल के जमाने से मैं हारमोनियम बज़ाया करता था। शहर में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मुझे सादर निमन्त्रण मिलता था।

गरमी के दिन थे, मैं ऑफिस से घर में आकर अपने कपड़े निकाल कर सिर्फ अंडरवियर और बनियान में ही बिस्तर पर पड़ा आराम कर रहा था। खुला हुआ था इसलिए मेरे लंड में कुछ-कुछ सेक्स की उत्तेजना महसूस हो रही थी। मुझे बिस्तर पर आराम करते हुए लगभग दस मिनट हो गए होंगे.. इतने में किसी ने दरवाजे पर खटखटाया।


'इस वक्त कौन आया होगा?' सोचते हुए मैंने दरवाजा खोला और शर्म के मारे लज्जित सा गया।

सामने प्रभा भाभी खड़ी थीं, प्रभा भाभी हमारी ही कालोनी में से मेरे अच्छे दोस्त की बीवी थी, उनकी उम्र लगभग 35 होगी.. वो शरीर से बड़ी ही मस्त और आकर्षक थी।

'आईए ना अन्दर..' दरवाजे से हटते हुए मैंने बोला।
वो कमर लचकाती हुई अन्दर आकर बिस्तर पर बैठ गई।
मैंने झट से लुंगी पहन ली और कहा- कैसे आना हुआ?

'वैसे तो मैं आपको बधाई देने आई हूँ..'
मैंने थोड़ा आश्चर्य से पूछा- बधाई? वो किस बात की?
'कल आपने हारमोनियम बहुत अच्छी बजाई.. अभी भी वो स्वर मेरे कान में गूँज रहे हैं।'

उसकी बात सही थी क्योंकि मैं एक कार्यक्रम में हारमोनियम बजा रहा था।
मैंने कहा- मैं ऐसे ही बजा रहा था.. पहले से ही मुझे संगीत का शौक है।
'इसीलिए मैं आपसे मिलने के लिए आई हूँ।'

मुझे उसकी यह बात कुछ समझ में नहीं आई.. मैं शांत ही रह गया।
वो फिर से बोली- एक विनती है आपसे.. सुनेंगे क्या?
'आप जो कहेंगी.. वो करूँगा.. इसमें विनती कैसी..' मैंने सहजता से कहा।
'मुझे भी संगीत का शौक है.. पहले से ही मुझे हारमोनियम सीखने की इच्छा थी.. पर कभी वक्त ही नहीं मिला. आप अगर मेरे लिए थोड़ा कष्ट उठाकर मुझे सिखायेंगे.. तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा.. हमारे घर में हारमोनियम भी है। हमारे उनसे भी मैंने इजाजत ले ली है.. और रात का खाना होने के बाद हम तालीम शुरू कर देंगे।'
मुझे उन्हें 'ना' कहना मुश्किल हो गया.. मैंने कहा- चलेगा.. रोज रात को हम नौ से दस तालीम करेंगे।

ऐसा सुनते ही उसका चेहरा खिल उठा.. 'दो-तीन दिन में तालीम शुरू करेंगे।' ऐसा तय करवा के वो चली गई।

तीसरे दिन मैं रात को साढ़े नौ बजे उसके घर पहुँच गया।
'आनन्द कहाँ है..?' मैंने अन्दर आते ही पूछा।
'आपकी राह देखते-देखते वो सो गए हैं.. आप कहें तो मैं उन्हें उठा दूँ?'
मैंने कहा- नहीं.. रहने दो।

मैं प्रभा भाभी के साथ एक कमरे में चला गया, यह जगह तालीम के लिए बहुत अच्छी है।
प्रभा भाभी ने सब खिड़कियाँ बंद की.. और कहा- यह कमरा हमारे लिए रहेगा..

एक पराई औरत के साथ कमरे में अकेले रह कर मैं कुछ अजीब सा महसूस कर रहा था। प्रभा भाभी को देख मेरे लंड में हलचल पैदा होने लगती थी।
उस दिन उसको बेसिक चीजें सिखाईं और मैं अपने घर के लिए चल पड़ा।

उसके बाद कुछ दिनों में तालीम में रंग चढ़ने लगा। प्रभा भाभी मेरा बहुत अच्छी तरह से खयाल रखती थीं, चाय तो हर रोज मुझे मिलती थी.. कभी-कभी आनन्द भी आ जाता.. पर ज्यादा देर नहीं रूकता.. लगता था उसका और संगीत का कुछ 36 का आंकड़ा था।
उस दिन शनिवार था.. कुछ काम की वजह से मुझे तालीम के लिए जाने के लिए देरी हो गई थी, दस बजे मैं प्रभा भाभी के घर गया।
'आज तालीम रहने दो..' ऐसा कहने के लिए मैं गया था.. पर मैंने देखा.. प्रभा भाभी बहुत सजधज के बैठी थीं।

मुझे देखते ही उसका चेहरा खिल उठा, मैं उसकी तरफ देखता ही रह गया, बहुत ही आकर्षक साड़ी पहने उसकी आँखों में अजब सी चमक थी।

'आज तालीम रहने दो.. आज सिर्फ हम तुम्हारी मेहमान नवाजी करेंगे।'
'मेहमान नवाजी..?' मैंने खुलकर पूछा।
'आज 'वो' अपने मौसी के यहाँ गए हैं.. वैसे तो मैं आपको खाने पर बुलाने वाली थी.. लेकिन अकेली थी.. इसलिए नहीं आ सकी।'

उन्होंने दरवाजे और खिड़कियाँ बंद करते हुए कहा.. उन्होंने मेरे लिए ऑमलेट और पाव लाकर दिया। मैंने ऑमलेट खाना शुरू कर दिया..
कि तभी उसने अपने कपड़े बदलने शुरू किए, मैं भी चोर नजरों से उसे देखने लगा, उसने अपनी साड़ी उतार दी और ब्लाउज भी निकाल डाला और अन्दर के साए की डोरी भी छोड़ डाली..

मेरे तो कलेजे में 'धक-धक' सी होने लगी।
प्रभा भाभी के शरीर पर सफेद ब्रा और छपकेदार कच्छी थी।

उसकी छाती के ऊपर बड़े-बड़े मम्मे ब्रा से उभर कर बाहर को आ गए थे। ये नज़ारा देख कर तो मेरा लंड फड़फड़ाने लगा, उसके गोरे-गोरे पैर देख कर मेरा मन मचलने लगा।
सामने जैसे जन्नत की अप्सरा ही नंगी खड़ी हो गई हो.. ऐसे लग रहा था, कामुकता से मेरा अंग-अंग उत्तेजनावश कांपने लगा।
फिर उसने एक झीना सा गाउन लटका लिया।

'आज तुम नहीं जाओगे.. आज मैं अकेली हूँ..'
और वो मेरा हाथ पकड़ कर अन्दर बेडरूम में लेकर गई, मानो मुझसे ज्यादा उसको ही बहुत जल्दी थी।
उसके मेकअप के साथ लगे हुए इत्र की महक पूरे कमरे में छा सी गई थी।

मेरी 'हाँ' या 'ना' का उन्होंने विचार न करते हुए मेरे कपड़े उतारने शुरू कर दिए। उसके स्पर्श से मेरा अंग-अंग खिल उठा.. कुछ ही देर में भाभी ने मुझे पूरा नंगा कर दिया।
मेरी दोनों जाँघों के बीच में खड़ा हुआ बहुत ही लम्बा मेरा लंड प्रभा भाभी देखती ही रह गई. और अपना गाऊन निकालने लगी..

'तुम्हारी होने वाली बीवी बहुत ही भाग्यशाली होगी..' गाऊन निकालते हुए उसने कहा।
'वो कैसे?' मैंने उसके गोरे-गोरे पेट को देखते हुए कहा।
'इतना बड़ा लंड' जिस औरत को मिलेगा.. वो तो भाग्यवान ही होगी ना.. मैं भी भाग्यवान हूँ.. क्योंकि अबसे मुझे तुम्हारा सहवास मिलेगा।'

उसने पीछे हाथ लेते हुए अपनी ब्रा निकाली।
मुझे उसके साहस का आश्चर्य हुआ।
झट से उसके तरबूज जैसे मम्मे बाहर आ गए।

उसके बाद झुक कर अपनी पैन्टी भी निकाल दी.. दूध सा गोरा जिस्म है भाभी का. पूरी नंगी.. मेरे सामने खड़ी थी.. मेरा लंड फड़फड़ाने लगा।
वो झट से मेरे पास आ गई और मेरे गालों पर चुम्बन लेने लगी.. उसने मुझे कस के पकड़ा.. वो तो मदहोश होने लगी थी। उसने अपने नाजुक हाथों से मेरा लंड हिलाना शुरू किया और झुक कर अपने होंठों से चूमने लग गई..

मेरे दिल में हलचल सी पैदा हो गई.. भाभी की ये हरकत बहुत ही अच्छी लग रही थी।
वो मेरा लंड वो ख़ुशी के मारे चाट रही थी, मैंने उसके चूतड़ों पर हाथ रखकर दबाना शुरू किया। उसके बड़े-बड़े मुलायम नितम्ब.. हाथों को बहुत ही अच्छे लग रहे थे। मैं बीच-बीच में उसकी चूत में उंगलियाँ डालने लगा. उसकी चूत गीली हो रही थी।
भाभी तो मुझसे चुदवाने के लिये दीवानी हो रही थी।

मैंने उसको बिस्तर पर लिटा दिया और उसकी टांगें फैलाकर मैं उसकी चूत चाटने लगा। ऐसा करते ही वो मुँह से ख़ुशी के स्वर बाहर निकालने लगी।
मैंने भी जोर-जोर से उसकी चूत चाटने को शुरू कर दिया. उसकी टांगें फैलाकर अपना मूसल सा मोटा लंड उसकी चूत पर रखा और धीरे-धीरे अन्दर घुसाने लगा।

उसको मेरा लंड अन्दर जाते समय बहुत ही मजा आ रहा था। वो जोर-जोर से चिल्ला कर बोल रही थी- डालो.. पूरा अन्दर डालो.. मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।

मेरा लंड अब सटासट उसकी चूत में जा रहा था.. मेरी रफ्तार बढ़ गई.. मेरा पूरा लंड उसकी चूत में जा रहा था..
भाभी ने मुझे कस के पकड़ लिया था, मैंने भी उसके मोटे-मोटे मम्मों को दबाते हुए उसको चोदना चालू किया।

बहुत ही मजा आ रहा था. बीच-बीच में उसके होंठों में होंठ डाल के नीचे से जोर-जोर से लंड अन्दर घुसा रहा था, नीचे से दिए धक्कों से उसके मम्मे जोर-जोर से हिल रहे थे, उसकी सुंदर काया बहुत ही आकर्षक दिख रही थी, उसको चोदने में बहुत ही आनन्द मिल रहा था, मेरी रफ्तार इतनी बढ़ गई कि बिस्तर की आवाज गूँजने लगी।

दोनों ही चुदाई के रंग में पूरे रंगे जा रहे थे। मैं अपना लंड जितना उसकी चूत में घुसा सकता था.. उतना जोर-जोर से घुसा रहा था। इतनी ताकत से उसे चोदना चालू किया कि उसने भी मुझे जोर से पकड़ लिया।

मेरा वीर्य अब बाहर आने का समय हो गया था, जोर से चूत में दबा कर मैंने सारा वीर्य उसकी मरमरी चूत में ही छोड़ दिया और थोड़ी देर उसके शरीर पर ही पड़ा रहा।

'वाह मुझे आज क्या मस्त चोदा है तुमने.. मेरे पति ने भी मुझे आज तक ऐसा आनन्द नहीं दिया है.. जो आज तुमने मुझे दिया है.. आह्ह.. तृप्त हो गई.. प्लीज मुझे जब भी वक्त मिले.. मुझे चोदने जरूर आ जाना..'
मैंने कहा- मुझे भी तुम्हें चोदने में बहुत मजा आ गया प्रभा..
मैं तो उसे अब नाम से पुकारने लगा।

'तुम्हें जब भी चुदवाने की इच्छा हो.. तब मुझे बताना.. मैं कुछ भी काम हो.. सब छोड़कर तुम्हारे पास आ जाऊँगा.. तुम्हें चोदने के लिए..'

प्रभा तो मेरे लंड की जैसे दीवानी हो गई थी।

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