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चलती बस में भाभी के साथ सेक्स का मजा

 दोस्तो, मेरा नाम रिंकी है, मैं 23 साल का हूं और मैं मध्यप्रदेश का निवासी हूं. मैं सरकारी नौकरी के एग्जाम के लिए तैयारी कर रहा हूं इसलिए दो साल से दिल्ली में रह रहा हूं. मगर इस बार मुझे इस कोरोना की वज़ह से घर वापस आना पड़ा.

ये सेक्स कहानी 2 साल पहले उस वक्त की है, जब मैं रिश्तेदार के यहां शादी में जा रहा था.
शादी के लिए मुझे एक छोटे से गांव में जाना था, जहां आने-जाने का कोई खास साधन भी नहीं था.

मैंने पहले ट्रेन से 4 घंटे सफर किया, फिर वहां से छोटी वाली बस पकड़ी जिसमें 2 लोगों की सीट पर भी 2 लोग ठीक से नहीं बैठ पा रहे थे.
मगर जाना तो था ही मुझे तो किसी तरह बैठ गया. एकदम बस के बीच में सीट भी मिल गई.

ये सफर लगभग 4 घंटे का था और मैं सोच रहा था कि ये समय कैसे कटेगा.
यहां तो कोई लड़की भी नहीं मिलेगी जिससे बातें करते हुए टाइमपास हो जाए.

कुछ देर बाद एक स्टॉप से कुछ कॉलेज वाली लड़कियां चढ़ गईं. मुझे बहुत खुशी हुई कि अब थोड़ा मज़ा आएगा.

बस में सीट खाली नहीं थी तो एक लड़की मेरे पास में ही खड़ी हुई थी, पर कोई ज्यादा हॉट टाइप नहीं थी.
फिर भी लड़की तो लड़की ही होती है, जिसके एक स्पर्श से आपका सब कुछ खड़ा हो जाता है. बस ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ.

कुछ देर ऐसे ही स्पर्श करते हुए सफर कटने लगा. कुछ देर बाद मेरा लंड खड़ा भी हो चुका था.
पर जब तक कुछ बात बनती तब तक उसका स्टॉप आ गया और वो चली गई.
मैं मन मसोस कर रह गया.

फिर कुछ देर बाद 5 औरतें बस में चढ़ीं, जिनमें से 2 लगभग 30-32 साल की रही होंगी.
दो शायद उनकी सास थीं और एक नई नवेली दुल्हन जैसी ही थी, उसकी उम्र करीब 25-26 साल की थी.
वो एकदम गोरी माल थी. उसने नीले रंग की साड़ी पहनी हुई थी और बड़ी ही सेक्सी भी थी.

मुझे उसका फिगर लगभग 34c-28-34 जैसा लगा. वो तो मेरे लिए भाभी जैसी ही थी.
वो सब औरतें ठीक मेरे पास ही खड़ी थीं क्यूंकि बस में काफी भीड़ भी थी और कोई सीट खाली नहीं थी.

अब जब भाभी मेरे पास खड़ी हुई, तो हमारी नज़रें भी बार बार मिल रही थीं.

उस बस में लगभग सारे ही 30+ दिख रहे थे और मैं ही उसका हम उम्र जैसा था.

वो भाभी मेरे एकदम पास में ही खड़ी थी और मेरी सीट पर हाथ रखे हुए थी.
तो मैंने सोने का बहाना करके उसके हाथ पर अपना सर रख दिया.

तभी उसने अपना हाथ खिसका लिया और मैं सोने का नाटक करता रहा.
फिर मैंने धीरे से अपना पैर खिसका कर उसके पैर से टच कर दिया.

इस बार उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, तब मुझे लगा शायद आगे बढ़ना चाहिए.

सड़क वैसे ही कच्ची थी, तो सब कुछ हिल-डुल रहा था और हरकत करना भी आसान था.

जैसे ही बस हिलती, मैं बहाने से अपना पैर उसके पैर पर सहला देता.
दो तीन बार मैंने ऐसे किया मगर अभी भी भाभी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, शायद उसे भी अच्छा लग रहा होगा.

कुछ सोच कर मैंने सोने के बहाने से फिर से अपना सर उसके हाथ पर रख दिया.
इस बार उसने हाथ नहीं हटाया.

तब मुझे आत्मविश्वास मिला कि अब मैं आगे बढ़ सकता हूं.

फिर मैं धीरे धीरे उसके हाथ पर अपना गाल सहलाता रहा और वो कुछ नहीं बोली.

तभी कुछ लोग पीछे के दरवाजे से चढ़े, तो वो मेरी सीट से थोड़ा आगे हो गई.
इससे मैं उसके कोमल हाथ के मज़े नहीं ले पा रहा था.
वो भी मुझे बार बार देख रही थी … जैसे वो भी मायूस हो गई हो.

फिर मैंने एक तरकीब लगाई, मैंने अपना एक पैर उसकी तरफ बढ़ाया और उसके पंजों पर रख दिया.

वो मेरी तरफ देख रही थी … तो मैंने उसको स्माइल दी.
उसने अपना सर झुका लिया. फिर मैं समझ गया कि मुझे क्या करना है.

मैं धीरे धीरे उसके पैरों की सहलाने लगा और वो भी कोशिश करके धीरे धीरे मेरे पास को खिसक रही थी.

पर उसकी साड़ी की वजह से मुझे उसके मुलायम पैर का फील नहीं मिल पा रहा था.
तब मैंने उसके दोनों पैर के बीच मैं अपना पर डाल दिया तो वो एकदम से मेरी तरफ देखने लगी.

मैंने इशारा किया कि वो थोड़ा और करीब आ जाए.

जब वो करीब आई, तब मैंने एक पैर से उसकी साड़ी को थोड़ा ऊपर करके अपना दूसरा पैर अन्दर कर दिया और उसके नंगे पैरों को सहलाने लगा.

मेरा लंड एकदम टाइट हो गया था, जो कि उसको भी मेरी फूली हुई पैंट से दिखने लगा था.
फिर ऐसे ही कुछ सहलाते हुए मैं उसकी जांघ के पास पहुंच गया.

तभी कुछ और लोग चढ़े और इस बार वो मेरे एकदम पास आ गई.
वो मुझे देख कर मुस्कुराने लगी.

उसकी स्माइल देख कर मेरा तो मन करने लगा कि इसको यहीं अपनी गोद में बिठा कर चोद दूं, पर ये पोर्न मूवी थोड़ी थी … जो ऐसा हो जाता.

अब वो ठीक मुझसे चिपक कर खड़ी हुई थी. उसकी चिकनी कमर बार बार मेरे गालों से रगड़ रही थी.
मुझे तो जन्नत मिल गई थी.

फिर मैंने भी अपना हाथ बढ़ा कर उसकी कमर पर लगा दिया और सहलाने लगा.

इस बार वो थोड़ा घूम गई.
मुझे लगा शायद किसी ने देख लिया होगा, पर फिर उसने धीरे से अपनी गांड को मेरी तरफ किया. मैं समझा नहीं, तभी उसने धीरे से अपनी गांड को मेरे गाल पर रगड़ा.

मैंने मुड़कर देखा, तो उसने इशारा किया कि गांड सहलाओ.

मैं मस्त हो गया और धीरे धीरे उसकी गांड को सहलाने लगा.

वो पूरे मज़े ले रही थी और इधर मेरा बेचारा लंड ऐसी सजा काट रहा था, जैसे भूख से तड़प रहा था.
पर ऐसे माहौल में और क्या कर सकते थे.

फिर मैंने तरकीब लगाई और उसकी सास, जो कि लगभग 50-55 साल से ज्यादा की रही होगी, उनसे कहा कि वो मेरी सीट पर बैठ जाएं … मैं खड़ा हो जाता हूँ.
सास आसानी से मान गई क्योंकि इतनी भीड़ में तो सभी को सीट चाहिए थी.

मैं अपनी माल के पास खड़ा हो गया तो मुझे सुकून मिला. मेरे से ज्यादा खुशी मेरी माल को थी.

वो भीड़ के बहाने से तुरंत मेरे से चिपक गई और उसकी गांड ठीक मेरे लंड के ऊपर आ गई थी.
मैंने भी अपना एक हाथ बढ़ाया और उसकी कमर पर रख दिया और उसकी गांड पर लंड रगड़ने लगा.

तभी उसका हाथ मेरे लंड और उसकी गांड के बीच में आया और उसने लंड को पकड़ लिया. मेरी तो आह निकल गई.

अब भाभी धीरे धीरे मेरे लंड को मसल रही थी और मैं बेकाबू हो रहा था.

फिर मैंने सोचा इसके सामने इसकी भाभी खड़ी है, तो मैं कुछ मज़े ले लूं. मैंने धीरे से अपना हाथ उसकी कमर से उसकी साड़ी के अन्दर कर दिया, तो वो सहम गई और लंड से हाथ हटा लिया.

मैंने उसके कान में बोला- रुक क्यों गई … हम पर किसी की भी नजर नहीं पड़ने वाली.

ये सुनकर उसने अपना हाथ वापस लंड पर रख दिया और मैंने भी अपना काम शुरू कर दिया. मैं धीरे धीरे अपना हाथ उसकी चूत तक ले गया. उसने पैंटी नहीं पहन रखी थी, शायद गांव में पैंटी ना पहनी जाती हो.
खैर … मुझे क्या, मैंने अपना काम जारी रखा.

और जब उसकी चूत को टच किया, तो जैसे करंट सा दौड़ गया. उसकी चूत एकदम गीली थी, बिल्कुल चुदने को तैयार.

मैंने उसकी चूत को सहलाना शुरू किया और वो सिहरने लगी.
तभी मैंने अपनी एक उंगली को उसकी चूत की फांकों में घुसाई और धीरे से अन्दर कर दी.

भाभी की चूत एकदम गीली होने की वजह से मेरी उंगली फिसलते हुए अन्दर चली गई और उसके मुँह से आह निकल गई.
पर किसी को शायद सुनाई नहीं दिया.

फिर मैंने उसकी चूत को उंगली से चोदना शुरू कर दिया.

लगभग 3-4 मिनट बाद भाभी फिर से मेरा लंड मसलने लगी.
तब मुझे लगा कि उंगली का डोज बढ़ा देना चाहिए.

अब मैंने धीरे से अपनी दूसरी उंगली को भी चूत में डाल दिया.

इस बार उसे थोड़ा दर्द हुआ … पर उसने मुँह नहीं खोला. शायद वो भी चाहती थी काम पूरा हो जाए और किसी को शक भी ना हो.

मैंने फिर से उसकी चूत को उंगली से चोदना शुरू कर दिया.
भाभी की चूत इतनी गीली थी कि उंगलियां आसानी से अन्दर बाहर फिसल रही थीं.

कुछ पल बाद मैंने अपनी पैंट का ज़िप खोल दिया और उसके कान में बोला कि मैंने दरवाज़ा खोल दिया है, अन्दर आ जाओ.

वो समझ गई और उसने अपना हाथ ज़िप के अन्दर डाल दिया और लंड को पकड़ लिया.

अब मैंने चूत में उंगली करने की स्पीड बढ़ा दी और उसकी प्रतिक्रिया में उसने भी मेरा लंड हिलाना शुरू कर दिया.
उसके सॉफ्ट हाथ लगते ही मेरा लंड लोहे की रॉड जैसा हो गया.

अब जैसे जैसे मैं उसे उंगलियों से चुत चोद रहा था, वो भी मेरा लंड हिला रही थी.

भाभी पैंट के बाहर से भी काफी देर से मेरे लंड को रगड़ रही थी, इसलिए मेरा माल निकलने वाला था.

फिर मैं उसके कान में बोला- मेरा निकलने वाला है.
वो बोली- मेरे हाथ में निकाल दो सारा.

वो लंड हिलाती रही और मेरा रस निकल गया.
उसने मेरा माल अपने हाथ में ले लिया और अपनी कमर पर लगा लिया.

अब मेरी बारी थी, उसका माल निकालने की … तो मैं जोर से उंगली करने लगा.

वो सिहरने लगी तो मैं समझ गया कि इसका माल भी आने वाला है.
मैं भाभी की चुत में उंगली करता रहा और उसका माल निकल गया.

उसके माल की गर्मी से जल्दी ही मेरा लंड फिर से खड़ा होने लगा.

मैंने फिर से उसकी चूत सहलाना शुरू कर दिया, जिससे शायद वो फिर से गर्म होने लगी और साथ में मेरा लंड भी खड़ा होने लगा था.

तभी उसकी सास बोली- शिखा, तुम इतनी देर से खड़ी हो … थक तो नहीं गई!

तब मैंने अपना हाथ बाहर निकाल लिया कि कहीं उनकी नजर ना पड़ जाए

शिखा बोली- नहीं भाभी, मैं ठीक हूं.
सास- अरे तुम्हें इस तरह से गांव की दिक्कतों की आदत नहीं है ना … इसलिए मैंने पूछा.

शिखा- नहीं भाभी, अब शहरों के साथ गांव वाले तौर तरीके भी जरूरी हैं.
सास- वैसे हम कुछ देर में पहुंचने वाले हैं.

शिखा- इतना जल्दी, मुझे तो लगा अभी काफी टाइम लगेगा.
सास- नहीं बस आधे घंटे में पहुंच जाएंगे.

शिखा- अच्छा ठीक है भाभी.
तब मैं उसके कान में बोला- अब हम क्या करें, आप तो पहुंचने वाले हो?

शिखा- जितना बन सके, कर लेते हैं, वैसे भी ये हमारी आखिरी मुलाक़ात ही तो होने वाली है.
मैं- पहली मुलाक़ात तो काफी हसीन रही … बस ये आखिरी वाली बात ठीक नहीं है.

शिखा- क्या मतलब?
मैं- ऐसी और भी मुलाकातें हों, तो कुछ मज़ा आए.

शिखा- अब हमारे नसीब में शायद इतना ही है.

तभी मैंने फिर से उसकी साड़ी में हाथ डाल दिया और चूत सहलाने लगा. मेरा लंड फिर से टाइट हो गया.

इस बार मैंने अपना खड़ा लंड उसकी गांड पर लगा दिया.
उसे भी काफी मज़ा आने लगा. उसने भी अपनी गांड मेरे लंड पर सटा दी और धीरे धीरे लंड पर रगड़ने लगी.

मुझे तो बस लग रहा था कि अभी इसको नंगी करके चोद दूं.
शायद वो भी यही सोच रही थी, पर हम दोनों ही मजबूर थे कि सब कुछ मिलते हुए भी चुदाई का सुख नहीं ले पा रहे थे.

मैं तो मन ही मन उसको नंगी करके उसी बस में सबके सामने चोद रहा था.
तभी मैंने अपनी दो उंगलियां सीधी उसकी चूत में डाल दीं और वो उसने मेरा हाथ पकड़ कर मेरे हाथ को चूत में धक्का देने लगी.
मैं समझ गया कि इसे भी बहुत जल्दी है.

तभी मैं उसकी चूत में जोर जोर से उंगली करने लगा.
वो मेरे लंड पर गांड रगड़ रही थी. मेरे कहने पर उसने फिर से मेरे पैंट में हाथ डाल कर मेरा लंड हिलाना शुरू कर दिया.
इस बार वो भी हार्डकोर तरीके से लंड हिला रही थी.

मुझे तो बहुत मज़ा आ रहा था. उसके ऐसे हिलाने की वज़ह से मेरा माल निकलने वाला हो गया था. मैंने भी जोर जोर से उंगली करना शुरू कर दिया.

तभी मैं झड़ने लगा और मैंने सारा माल अपने हाथ में लेकर पीछे से उसकी साड़ी के अन्दर डाल दिया.
थोड़ा माल उसके हाथ में भी लगा था जिसे उसने चाट लिया.

मैं तो देखता रह गया कि गांव में भी ये सब होता है.

पर मैं अपने काम पर लगा रहा और अब वो भी झड़ने लगी. उसकी साड़ी अन्दर से गीली हो चुकी थी.

शिखा- आपने मेरी साड़ी खराब कर दी.
मैं- कुछ अच्छा करने पर दाग लगते हैं, तो दाग अच्छे हैं.
शिखा- वैसे अब आज से ये मेरी फेवरेट साड़ी हो गई है.

फिर ऐसे ही मैं शिखा की गांड सहलाते हुए मजा लेते रहा.
तभी उसका गांव आ गया और वो मुस्कुराती हुई चली गई.

थोड़ा आगे जाकर मेरा स्टॉप आ गया और मैं भी उतर गया.

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