हैलो मैं संजना. सेक्स कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा था कि एक 19-20 साल का नौजवान मेरे जैसी अधेड़ उम्र वाली महिला के अन्दर दबी हुई वासना की आग को भड़का रहा था.
चलती बस में उस लड़के ने मेरे जिस्म के हर अंग को झनझना दिया था.
पतली रूबिया के कपड़े के ब्लाउज से कसा हुआ मेरा कंधा और उसका कंधा एक दूसरे से कुश्ती कर रहे थे. कंधे से कोहनी तक दोनों के हाथ सटे हुए थे.
इस अवस्था में और कामुकता तब बढ़ी, जब मैंने अपना बायां हाथ उसके कंधे के ऊपर से उसकी सीट पर रख दिया.
जैसे ही मेरा हाथ सीट पर पड़ा, उसका दायां कंधा, मेरे बाएं बोबे पर इतना दबाव देते हुए लगा कि खरबूजा के आकार का मेरा बायां बोबा, तन कर आम बन गया. बस उम्र का फ़र्क ये पड़ा कि इस आम से रस नहीं टपका.
कंधा मेरे बोबे में धंसाए उसका दायां हाथ मेरी जांघ पर तैरने लगा.
बीच बीच में साड़ी से ढकी मेरी सुरंगी नाभि में वो अपनी उंगली घुसा रहा था. उसकी आधी उंगली मेरी नाभि में घुसी जा रही थी.
वो अपनी पूरी उद्दंडता से कभी नाभि में उंगली आगे-पीछे कर रहा था, कभी उसमें उंगली घुमा रहा था. मैं उसका हाथ पल्लू से ढककर उसको पूरा सहयोग कर रही थी.
कुछ पल बाद वो वापस मेरी मांसल जांघों पर हाथ फिराने लगा.
उसने अपनी गोद में बैग रखा हुआ था, तो उसके लिंग के भाव को ना तो मैं देख पा रही थी … ना ही कोई और. पर उसके लिंग का भाव मैं अपने मन में जरूर भांप रही थी.
मैंने उसके हाथ को अपने साड़ी के पल्लू से ढका और सब्जी का थैला इस तरह स कर लिया कि उसका सारा भार मेरी दाईं जांघ पर आ गया था और पहली वाली तरफ से हल्का हुआ थैले का कपड़ा, उसके हाथ को ढक रहा था.
मेरी इन सब लीपापोतियों से उसका आत्मविश्वास ओर उसकी वासना सातवें आसमान पर थी.
मेरी जांघ पर उसका बहकता हाथ मुझे इस कदर कामुक कर रहा था कि मुझे अपने दाएं हाथ में साड़ी का पल्ला लेकर मुख के भाव छुपाने पड़ रहे थे. पर ये भाव में सिर्फ बस की भीड़ से छुपा पा रही थी, उससे नहीं.
शायद मेरी सिसकारी में इतनी आवाज तो आने लगी थी कि मेरे मुख से 6-7 इंच दूर उसके कान तक जा रही थी.
इसी का उत्तर था कि उसका हाथ हर सेकंड पहले से ज्यादा दबाव से मेरी मांसल जांघ को मसल रहा था.
उसने अपनी जांघों पर खड़ा रखा हुआ बैग आड़ा कर दिया. अब मेरे थैले और उसके बैग के बीच जरा सी ही जगह थी.
अगले ही पल उसने बैग की चैन खोलने के बहाने अपना दायां हाथ मेरे ऊपर इतना चढ़ा दिया कि उसकी कोहनी के ऊपर की भुजा मेरे दोनों विशाल वक्षों के बीच धंस रही थी और कोहनी मेरे वक्षों के नीचे चुभ रही थी.
कोहनी के नीचे से लेकर कलाई तक उसका हाथ मेरे नंगे पेट पर पूरे दबाव से चिपक रहा था.
तभी उसकी उंगलियों ने बैग की चैन खोली और उसमें से अपना फोन निकाला. चैन लगाकर उसने हाथ मेरे शरीर पर रगड़ कर हटाया.
उसकी भुजा से लेकर कलाई तक मेरे वक्ष से नंगे पेट तक रगड़ा.
इस बार उसने अपनी हथेली का पूरा दाब, साड़ी पर लगे क्लिप को दबाते हुए मेरी योनि के ऊपरी पाट को मसलते हुए निकाला.
इन सब हरकतों को भीड़ की नजर से देखें, तो ये स्थिति बहुत आम और विवशतापूर्ण थी. पर हम दोनों ही इनका अनुभव कर पा रहे थे कि ये कितनी कामुक थी.
मेरा बदन अब तपने लगा था और इस तपन में उसका सटा हुआ शरीर और अगन बढ़ा रहा था.
किसी का भी ज्यादा ध्यान ना देने का प्रमुख कारण हम दोनों का उम्र अंतराल भी था.
वो भले ही हष्ट-पुष्ट लंबा पूरा था, पर मेरे अधेड़ उम्री मांसल गदराए शरीर के सामने वो मेरा बच्चा ही प्रतीत हो रहा था.
उस पर शायद कोई उम्र का जोर समझ कर शक भी कर ले, पर मेरे सिर के काले बालों के बीच से निकले उजले श्वेत बालों को देखकर कोई यह नहीं सोच सकता था कि इन छोटी छोटी मादक हरकतों का आनन्द जो कर रहा था, उससे ज्यादा आनन्द जिसके बदन पर ये हरकतें की जा रही थीं, वो ले रही थी.
उसकी सीट पर रखे मेरे बाएं हाथ की कांख में उगे घने बालों में अब पसीना चू रहा था. जो मेरे ब्लाउज के कपड़े से निकल कर उसकी कमीज़ को नम कर रहा था.
इस सुंगध से दोनों की मादकता बढ़ रही थी. ये पूरी भीड़ के लिए पसीने की बदबू थी, पर फिलहाल हम दोनों में यह मादक सुगंध एक असीम ऊर्जा भर रही थी.
बीच में वो अपने कंधे को मसल कर मेरी कांख का रस अपने कंधे पर समेट रहा था.
कांख पर चलती उसके कंधे की उस गति का आनन्दमय भाव मैं सिर्फ भीड़ के भय से अपने अन्दर समेटे हुए थी.
अपने बाएं हाथ में फोन लेकर उसने शायद मैसेज में कुछ लिखा और मोबाइल को तिरछा करके मेरी तरफ घुमाया.
मैंने थैले में रखे अपने पर्स से चश्मा निकाला और उस पर फूंक मार कर अपने उभरे वक्ष के ब्लाउज के ऊपर उसे पौंछा.
चश्मा लगा कर जब मैंने देखा, तो उसने मैसेज बॉक्स में लिखा हुआ था.
‘नाम?’
मैंने पर्स से अपना फोन निकाला और इसी क्रिया में मैंने अपना थैला उसके बैग से चिपका दिया.
अब मैं नाभि से नीचे घुटनों तक अपने थैले से ढकी थी और वो कमर से जांघ के थोड़ा ऊपर तक बैग से ढका था.
मैंने फोन अपने दाएं हाथ में पकड़ा और अपना बायां हाथ नीचे घुसाकर उसकी जांघ पर टिका दिया.
जब मेरा हाथ उसकी गर्म नाजुक जांघ पर छुआ, तो उसके चेहरे के भाव विस्मय बोधक हो गए.
मुझे इस हरकत की प्रतिक्रिया यह मिली कि उसका हाथ मेरी साड़ी और पेटीकोट के ऊपर से दोनों जांघों के बीच गरमायी और भभकती योनि पर आ गया.
अब उसका दायां हाथ मेरे शरीर पर था और मेरा बायां हाथ उसके शरीर पर.
नीचे के इन हाथों का खेल एक दूसरे का बदन पर चल रहा था और ऊपर मोबाइल हाथ में लिए दोनों हाथों से जो बातें हो रही थीं, उनका खेल मन पर चल रहा था.
मैंने जवाब अपने फोन के मैसेज बॉक्स में लिख कर हाथ थैले पर टिकाकर उसको दिखाया.
‘संजना … और तुम्हारा?’
इस प्रश्न का जवाब उसके ऊपरी हाथ से पहले निचले हाथ ने दिया.
उसकी मध्यमा उंगली, मेरी साड़ी और पेटीकोट में घुसती हुई मेरी योनि की फैली दरार में घुसने की कोशिश करने लगी.
उंगली तो कपड़े रूपी दीवारों के कारण घुसने में नाकाम रही, पर साड़ी की मोटी सलवटों और पेटीकोट के कपड़े सहित उंगली की मोटाई किसी मध्यम आकार के लिंग के समान हो गई.
उस मोटी उंगली और मेरे कपड़ों के मेल से बना कृत्रिम लिंग, मेरी फैली योनि को छेदने में कामयाब रहा.
मेरे पेटीकोट का कपड़ा किसी मोटे कपड़े के बने कंडोम की भांति लग रहा था, जिसका सूखापन योनि के टपकते रस से गीला होता हुआ मुझे महसूस हो रहा था.
इसी दौरान ऊपरी हाथ ने अपना जवाब दिया ‘तरुण सिंह … क्या हम दोनों नम्बर अदल बदल सकते हैं?’
चश्मे से आंखों पर जोर देकर मैंने उसका मैसेज पढ़ा और उसी के अंदाज को अपना कर ऊपरी हाथ से पहले मैंने निचले हाथ से जवाब दिया.
अपने बाएं हाथ में उसका लिंग पकड़ कर पूरी ताकत से दबा दिया.
ये हरकत अगर अकेले में हुई होती, तो शायद वो चीख पड़ता. पर यहां वो सिर्फ अपने होंठों भींच पाया.
लिंग को ढीला छोड़कर मैंने अपनी तर्जनी उंगली उसके लिंग के छिद्रित भाग पर ले आई.
अपनी उंगली की टपोरी को उसके चारों और घुमाने लगी और छिद्र पर दबाव देने लगी.
इस शारीरिक प्रतिक्रिया के अलावा मेरे दिमाग में यह चल रहा था कि कहीं ये गलत तो नहीं हो रहा है?
हम दोनों ने कहां से शुरू किया था और कहां जा रहे है? नंबर दे दिए, तो कहीं कोई बड़ी प्रॉब्लम खड़ी ना हो जाए.
इसी ऊहापोह के बीच उसकी मासूम सी सूरत पर छाई निश्चल मुस्कान ने मेरे सारे बड़े बड़े सवालों के जवाब एक पल में दे दिए. और बिना कुछ ज्यादा सोचे समझे मैंने अपने मोबाइल के इन बॉक्स में नंबर लिख कर उसको बता दिया.
नंबर मिलते ही उसके चेहरे की चमक ही बदल गई और उसने तुरन्त मेरे नंबर को अपने फोन में सेव किया.
फोन अपनी कमीज़ की जेब में रख कर मेरे कान में धीरे से फुसफुसाया- मेरा स्टॉपेज 5-7 मिनट में आने वाला है.
इन शब्दों का मेरे मन पर या यूं कह दूँ कि मेरी वासना पर गहरा आघात लगा.
मैं इस पल में जिंदगी भर जीने को तैयार थी.
अब मैंने उसके लिंग पर अपनी घूमती उंगली की गति बढ़ा दी और बीच बीच में लिंग को आगे पीछे रगड़ने लगी.
लिंग मुख पर उसका लसलसाता रस मेरी उंगली पर लग रहा था.
मैंने अपना पूरा हाथ लिंग मुख पर फिराया और तौलिए जैसे उसके लिंग रस को पैंट के ऊपर से हाथ पर पौंछने लगी.
वो झड़ा नहीं था, पर गरमाहट से जो रस टपक रहा था, वो लगभग मेरे पूरे हाथ पर लग गया था.
ऐसा नहीं था कि समय सीमा सुनकर सिर्फ मैं ही आतुर थी; उसके भी हाथ का जोर मेरी गहरी योनि पर बढ़ता जा रहा था. लग रहा था जैसे वो अपना पूरा हाथ उस छेद में घुसा देगा.
उंगली के बने लिंग को उसने पूरा अन्दर बैठा दिया था. पेटीकोट और साड़ी दोनों ही योनि में घुसकर छिद्र नुमा दिखाने लगी थीं.
अब वो सिर्फ उस छिद्र में जोर जोर से अपनी उंगली अन्दर बाहर कर रहा था. उधर बना कृत्रिम छिद्र को मेरी योनि छिद्र मानकर वो उसमें हर धक्के से और गहरी चोट करते जा रहा था.
योनि से बह रहा लसलसा रस उसकी उंगली पर मेरे पेटीकोट और साड़ी से छनकर पहुंच चुका था.
कंडक्टर चिल्लाया- शंभू नगर आने वाला है. शंभू नगर वाले आगे आ जाओ.
ये सुनकर उसने मेरी तरफ मुस्कान भरी नजरों से देखा, मैंने भी मुस्कुरा कर उसके लिंग पर जोरदार जकड़न देकर उसे जाने की इजाजत दे दी.
बदले में उसने कृत्रिम छेद में इतना जोर का झटका मारा कि वो मेरे योनि छिद्र में झटके से आगे सरक गया और मैं दर्द से कराह गई.
उसने खुद को समेटा और बैग को अपनी कमर से नीचे की तरफ आगे लंड को ढकते हुए लटका लिया.
फिर वो मेरी ओर हाथ हिलाता हुआ दरवाजे पर पहुंच गया.
वहां खड़ा वो मुझे ताके जा रहा था, जवाब में मैं भीड़ से निडर, उसकी आंखों में अपनी आंखें गड़ाए निहारे जा रही थी.
आखिर बस रुकी और वो मेरी तरफ हाथ हिलाता हुआ झट से नीचे उतर गया. मैंने जवाब में जो हल्का हाथ हिलाया, वो शायद उसने देखा भी नहीं था.
क्षण भर में वो मेरे बगल में बस की खिड़की के नीचे था. अपने दाएं हाथ की पूरी मध्यमा उंगली जिस पर अभी भी मेरा योनि रस रोड लाइट में चमक रहा था, उसने नशीले अंदाज में अपने मुख में लेकर चूस लिया.
मैं देखकर दंग रह गई कि ये वही उंगली थी, जिस पर मैं अपना योनि रस छोड़ रही थी. वो मेरा पूरा योनि रस एक बार में चाट गया.
पहले तो मैं थोड़ा झिझकी, पर इसे उत्सुकता कहूं … या कामवासना पर जवाब में मैंने भी अपने बाएं हाथ को उसे दिखाकर जीभ निकालकर पूरी हथेली चाटी. रस अब तक सूख चुका था, पर जीभ लगते ही उसमें वही लसलसाहट आ गई.
यह मेरी 44 साल की जिंदगी का पहला अनुभव था, जब मैं किसी मर्द का रस चाट रही थी.
पूर्ण रस ना सही, पर यह उसी का आगाजी रूप था.
इस स्वाद को मैंने एक एक उंगली में जीभ घुसा कर चाटा. पूरी चिपचिपी हथेली को मैं चाट रही थी.
तभी आवाज आई- चलो उस्ताद.
बस चल पड़ी, वो हाथ हिलाए मुझे विदा दे रहा था और मैं जवाब में हाथ हिलाए इसी उधेड़बुन में थी कि क्या यह यहीं खत्म हो जाएगा या ये सिर्फ एक शुरूआत है.
आगे की सेक्स कहानी फिर कभी लिखूंगी, जब तरुण से मुलाक़ात होगी.
Friends mera naam Vikram hai. Main ek middle class family se hoon aur Faridabad mein rehta hun. Mere ghar mein main, mummy, papa hain bas. Papa ka apna kaam hai. Main kabhi kaam pe papa ke saath to kabhi masti yahi mera kaam hai. Meri mom house wife hain. Ye kahani meri maa ki hai. Meri maa ka naam Sapna hai, unki age 48 years aur figure 36 34 38 hai.. Ab main kahani pe aata hun aapko jyada na pakate hue.Ye khani meri maa or mere facebook friend ki hai. Meri maa ek normal house wife thi is kahani se pehle. Ye kahani 3 month pehle ki hai. Karib 6.. Months pehle main aapne ek facebook friend ko apne ghar leke aaya tha or use apni mom dad se milaya tha. Wo humare ghar se karib 5 km door hi tha to hum dono mein bahut achchhi dosti ho gayi or us ka mere ghar aana jaana ho gaya. Wo kabhi kabhi mere na hone par bhi aane laga. Kabhi meri maa use market mein milti to wo maa ki help bhi kar deta tha. Dheere dheere wo maa se bahut close ho gaya or maa ne bhi use apna mobile nu...
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